आएँगे गर उन्हें ग़ैरत होगी वो न आए तो क़यामत होगी हश्र में कौन सुनेगा फ़रियाद सद्द-ए-रह हद्द-ए-समाअ'त होगी नंग-ए-नज़्ज़ारा है हम चश्मा-ए-आम हम न देखेंगे जो रूयत होगी यक तरफ़ हो के रहेंगे यक-रंग हम को आराफ़ से नफ़रत होगी शिकवा है दीन-ए-वफ़ा में एहदास मुझ से काहे को ये बिदअ'त होगी हैं क़यामत में ताम्मुल क्या क्या वस्ल की कौन सी साअत होगी रेग हूँ चाहिए दरिया-ए-शराब मय-कदे पर न क़नाअत होगी है शब-ए-वस्ल-ए-दो-आलम गेसू वो जबीं सुब्ह-ए-शहादत होगी बहर-ए-रहमत है दो-आलम को मुहीत मेरे मशरब की सी वुसअ'त होगी मय से आलूदा हुआ दामन-ए-हुस्न मुत्तहिम ख़ून की तोहमत होगी खींचता था कोई उन का दामन ख़ाक में वस्ल की हसरत होगी रास है चारा-ए-बिल-मिस्ल मुझे क़ैद से और भी वहशत होगी शो'ला-रू पढ़ते हैं कलिमा तेरा शम्अ' अंगुश्त-ए-शहादत होगी ग़ैर की आग में जलने न दिया हुस्न की सी किसे ग़ैरत होगी वाशुदा ग़ुंचा-ए-ख़ातिर मत माँग मुंतशिर बू-ए-मोहब्बत होगी ज़हर लगती है उन्हें मेरी हयात क्यूँ कि मंज़ूर-ए-शहादत होगी खा गए नर्गिस-ए-शहला का फ़रेब कि उन आँखों में मुरव्वत होगी तेरी ज़ुल्फ़ों ने चढ़ाए चिल्ले दिल की इस कूचे में तुर्बत होगी बन गए सात जहन्नुम तह-ए-ख़ाक किस के पहलू में ये हिद्दत होगी कहीं सर फोड़ के मर रहिए 'बयाँ' इक जहाँ से तो फ़राग़त होगी