बात साक़ी की न टाली जाएगी ये ग़ज़ल साँचे में ढाली जाएगी कर के तौबा आए दिल को जब क़रार मुहर-ए-शीशा तोड़ डाली जाएगी जब नक़ाब-ए-रुख़ हटा ली जाएगी सुब्ह होगी रात काली जाएगी कहकशाँ है रिफ़अ'तों में वाज़गूँ उस तरफ़ क्यों तब्अ'-ए-आली जाएगी पान खाते हैं तो वो करते हैं क़त्ल कब भला होंटों से लाली जाएगी बाग़बाँ आमादा-ए-पैकार है ये सबद गुलचीं की ख़ाली जाएगी दस्तक-ए-नामूस का है ये शुऊ'र दर पे दिलबर के न टाली जाएगी मेहमाँ आली-तबीअ'त है बहुत ख़्वान में सोने की थाली जाएगी ग़म न कर 'नसरीं' तिरी कश्ती ज़रूर शोख़ मौजों से निकाली जाएगी