गँवा कर आन कुछ पाया तो क्या है ख़ुदी का गीत अब गाया तो क्या है कुछ ऐसी आँधियाँ दिल में चली हैं वो इस तूफ़ाँ में घबराया तो क्या है तनी है आसमाँ पे काली चादर दिया इक रौशनी लाया तो क्या है अज़ाब-ए-आख़िरत का ख़ौफ़ ले कर किसी के काम जो आया तो क्या है मोहब्बत दर दरीचों से वरा है ज़मीं पर हो रहे साया तो क्या है नवा-पैरा चमन में बुलबुलें हैं ख़िज़ाँ का रंग अगर छाया तो क्या है