बाब-ए-रहमत पे दुआ गिर्या-कुनाँ हो जैसे गुम-शुदा बेटे की मुज़्तर कोई माँ हो जैसे उस की मुम्ताज़ की रूदाद-ए-मोहब्बत लिख दूँ ऐसे कहता है कोई शाह-जहाँ हो जैसे गुफ़्तुगू में वो हलावत वो अमल में इख़्लास उस की हस्ती पे फ़रिश्ते का गुमाँ हो जैसे उस की दुज़दीदा-निगाही के हैं सब ही घायल कोई सय्याद लिए तीर-ओ-कमाँ हो जैसे मुझ को उर्दू-ए-मुअ'ल्ला नहीं आती अब तक तुझ को ये ज़ोम तिरे घर की ज़बाँ हो जैसे हम को रखती है निशाने पे सियासत उन की घर जलाने पे ब-ज़िद बर्क़-ए-तपाँ हो जैसे उस के आते ही सनम-ख़ानों के बुत बोल उठे मुश्रिकों में कोई एजाज़-ए-बयाँ हो जैसे यूँ तिरी ज़ुल्फ़ की ख़ुशबू है सर-ए-शाम उड़ी कश्ती-ए-फ़िक्र यम-ए-फ़न में रवाँ हो जैसे तेरे अशआ'र उतर आते हैं 'दाएम' दिल में हक़-परस्तों के लिए सौत-ए-अज़ाँ हो जैसे