बाब-ए-तिलिस्म-ए-होश-रुबा मिल गया मुझे मैं ख़ुद को ढूँडता था ख़ुदा मिल गया मुझे जाना कि रेग-ज़ार के सीने पे ज़ख़्म हैं साया जो रास्ते में पड़ा मिल गया मुझे वीरानियों से उस ने मिरा हाल सुन लिया तन्हाइयों से उस का पता मिल गया मुझे शोहरत के आसमान पर उड़ने लगा था मैं रस्ते में आगही का ख़ला मिल गया मुझे दुनिया तो मुझ को छोड़ के आगे निकल गई ख़्वाबों का इक जज़ीरा-नुमा मिल गया मुझे गुमराहियों पे फ़ख़्र की मंज़िल के पास ही इक संग-ए-मील हँसता हुआ मिल गया मुझे जन्नत मिरे ख़याल की मिस्मार हो गई बद-क़िस्मती से ज़ेहन-ए-रसा मिल गया मुझे