बच निकलना क्या इख़्तियार में है ज़िंदगी मौत के हिसार में है आरज़ू और मेरे दिल की बिसात एक शो'ला सा रेग-ज़ार में है कितने सूरज निगल गई ज़ुल्मत आस का दीप किस शुमार में है जो ख़िज़ाँ में भी मिल नहीं सकती वो उदासी भरी बहार में है नफ़रतों को भी जिस से नफ़रत हो ऐसी नफ़रत तुम्हारे प्यार में है बे-क़रारी में था क़रार मगर आज तो बेकली क़रार में है हौसलों की निगाह से देखो कामरानी का राज़ हार में है वो भी तुम ने दिया नहीं हम को जो तुम्हारे ही इख़्तियार में है ना-मुरादी की हद है ये 'अरशद' जीत भी अपनी आज हार में है