हुस्न-ए-ताज़ा कँवल के जैसा है और चेहरा ग़ज़ल के जैसा है रंग टूटी हुई जवानी का एक उजड़े महल के जैसा है अहल-ए-मेहनत की मेहनतों का सिला आज मिट्टी के फल के जैसा है ज़ुल्म पर आह भी नहीं करते अपना जीना अजल के जैसा है वो ज़माना था अम्न का दुश्मन ये ज़माना भी कल के जैसा है काम होता है बात पर उस की अज़्म उस का अमल के जैसा है अपने माहौल की ग़लाज़त में वो शगुफ़्ता कँवल के जैसा है आज के रहबरों का हर वा'दा देखना गुज़रे पल के जैसा है मुल्क में क्या फ़सादियों का हल आज कैंसर के हल के जैसा है मेरी उलझन का सिलसिला शायद तेरी ज़ुल्फ़ों के बल के जैसा है किस को मंज़िल मिलेगी ऐ 'अरशद' अज़्म किस का अमल के जैसा है