बड़ा मुख़्लिस हूँ पाबंद-ए-वफ़ा हूँ किसी की सादगी पर रो पड़ा हूँ मिरी क़ीमत ज़मीन-ओ-आसमाँ है बहुत अनमोल हूँ फिर भी बिका हूँ छलकता जाम हूँ फिर भी हूँ प्यासा मैं अपने आप में इक कर्बला हूँ न जाने गुफ़्तुगू क्या गुल खिलाए तुम्हारी ख़ामुशी से जल गया हूँ किताब-ए-दिल को दीमक लग गई है तुम्हारा नाम क्या है ढूँढता हूँ हज़ारों दाग़ हैं मेरे बदन पर न जाने किस के दिल का रास्ता हूँ 'कमाल' इस क़त्ल-गाह-ए-रौशनी में हज़ारों बार मैं बुझ कर जला हूँ