बदल के देख लिए ज़ाविए उड़ानों के ख़िरद से तय न हुए फ़ासले ज़मानों के समुंदरों के तमव्वुज, नहंग, वुसअतें, ख़ौफ़ कहाँ पे हौसले टूटे हैं बादबानों के फ़लक से रोज़ उतरते हैं रौशनी के ख़ुतूत मगर न चमके मुक़द्दर ग़रीब-ख़ानों के ख़िज़ाँ का ज़हर सरायत हुआ है रग रग में गुलाब-चेहरे हुए ज़र्द गुल्सितानों के तुलू-ए-सुब्ह के आसार उफ़ुक़ पे हैं शायद चराग़ बुझने लगे हैं इताब-ख़ानों के किरन का नेज़ा लिए हाथ में चलो 'अशरफ़' हैं देव रास्ते में बर्फ़ की चटानों के