बादल की तरह रंज-फ़िशानी करें हम भी शायद कभी इस आग को पानी करें हम भी अब सिलसिला-ए-क़िस्सा-ए-शब टूट रहा है अब इज़्न अता हो तो कहानी करें हम भी हम को भी कभी देख हवाओं के सफ़र में सहरा की तरह नक़्ल-ए-मकानी करें हम भी ऐसा है कि सिक्कों की तरह मुल्क-ए-सुख़न में जारी कोई इक याद पुरानी करें हम भी इस लम्हा-ए-रुख़्सत के धड़क उठने से पहले ठहरे हुए दिल तुझ को निशानी करें हम भी