बादाम दो जो भेजे हैं बटवे में डाल कर ईमाँ ये है कि भेज दे आँखें निकाल कर दिल सीने में कहाँ है न तू देख-भाल कर ऐ आह कह दे तीर का नामा निकाल कर उतरेगा एक जाम भी पूरा न चाक से ख़ाक-ए-दिल-ए-शिकस्ता न सर्फ़-ए-कुलाल कर ले कर बुतों ने जान जब ईमाँ पे डाला हाथ दिल क्या किनारे हो गया सब को सँभाल कर तस्वीर उन की हज़रत-ए-दिल खींच लीजे गर रख देंगे हम भी पाँव पे आँखें निकाल कर क़ातिल है किस मज़े से नमक-पाश-ए-ज़ख़्म-ए-दिल बिस्मिल ज़रा तड़प के नमक तो हलाल कर दिल को रफ़ीक़ इश्क़ में अपना समझ न 'ज़ौक़' टल जाएगा ये अपनी बला तुझ पे टाल कर