कौन दुनिया से बादा-ख़्वार उठा चश्म-ए-तर अब्र-ए-नौ-बहार उठा खा के ग़श गिर पड़े खड़े बैठे बैठ कर इस अदा से यार उठा आतिश-ए-इश्क़ देख कर मालिक अल-अमाँ अल-अमाँ पुकार उठा दर्द ताज़ीम-ए-मर्ग को दिल में शब-ए-फ़ुर्क़त हज़ार बार उठा जीते-जी दौर-ए-आसमानी में न ज़मीं से ये ख़ाकसार उठा अब्र-ए-रहमत ने दे दिया छींटा बाद मरने के जब ग़ुबार उठा वहशत-ए-दिल ने फिर निकाले पाँव फिर तहम्मुल का इख़्तियार उठा फिर जुनूँ फ़स्ल-ए-गुल में लाया रंग फिर मैं होने को शर्मसार उठा हाल-ए-'बीमार' जा-ए-रिक़्क़त है मरहम-ए-दिल का ए'तिबार उठा चोर ज़ख़्म-ए-जिगर में बैठ गया चारागर हो के शर्मसार उठा