बादा-मस्ती आ करामत हो के मयख़ाने में आ चल परी शीशे से उड़ कर मेरे पैमाने में आ दूसरा ऐसा कहाँ ऐ दश्त ख़ल्वत का मक़ाम अपनी वीरानी को ले कर मेरे वीराने में आ वहशत-ए-दिल की नहीं तदबीर जुज़ अफ़्सुर्दगी तंगी-ए-ज़िंदाँ किसी पहलू से दीवाने में आ कर मुरत्तब कुछ नए अंदाज़ से अपना बयाँ मरने वाले ज़िंदगी चाहे तो अफ़्साने में आ चल निकल जाएँ इधर से अपनी दुनिया की तरफ़ हाँ तू ऐ तार-ए-नफ़स तस्बीह के दाने में आ पेल ज़ोर आपे से बाहर हो के जाएगा कहाँ आदमी बन आदमी आ अपने पैमाने में आ दामन-ए-फ़ानूस में ऐ शम्अ' ख़ुद-दारी नहीं किसवत-ए-नामूस अगर चाहे तो परवाने में आ ख़त्म करना चाहता हूँ पेच-ओ-ताब-ए-ज़िंदगी याद-ए-गेसू ज़ोर-ए-बाज़ू बन मिरे शाने में आ हो चली है रस्म-ए-अहल-ए-काबा 'नातिक़' अब तो आम बरहमन भी मुझ से कहता है कि बुत-ख़ाने में आ