बज़्म-ए-दुनिया जिस को कहते हैं वो पागल-ख़ाना था हम ने ख़ुद देखा है मतलब का हर इक दीवाना था बाग़बाँ ये चार तिनके थे पड़े रहते कहीं नख़्ल-ए-मातम पर भी क्या भारी मिरा काशाना था ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़्यादा पाँव फैलाती है क्यूँ भर गया जितना हमारी उम्र का पैमाना था ढूँडो तो बुत भी यहीं मिल जाएँगे मर्द-ए-ख़ुदा हम ने देखा है हरम ही में कहीं बुत-ख़ाना था कर गया क्यूँकर बयान-ए-दर्द-ए-दिल उन पर असर ये तो ऐ 'नातिक़' कोई अफ़्सूँ न था अफ़्साना था