बदन की मौज में अंगड़ाइयाँ उलझ जाएँ तिलिस्म ऐसा कि बीनाइयाँ उलझ जाएँ जो तेरे पाँव की बिखरी हो ख़ाक राहों में वहाँ से गुज़रें तो परछाइयाँ उलझ जाएँ खुली हो ज़ुल्फ़ तो सर पर दुपट्टा रख लेना न ऐसा हो कहीं पुरवाइयाँ उलझ जाएँ ज़बान-ए-इश्क़ जो खोलें कहीं पे सन्नाटे बड़े बड़ों की भी दानाइयाँ उलझ जाएँ निगाह दूर ही रक्खो हमारे ज़ख़्मों से जो इन को देखें तो गहराइयाँ उलझ जाएँ मजाज़ ठीक है दिल के तड़पते रहने का हमारी मौज में तन्हाइयाँ उलझ जाएँ इलाज इश्क़ का करने जो आए चारागर मरज़ में सारी मसीहाइयाँ उलझ जाएँ उरूज सारे बदल जाते हैं ज़वालों में अगरचे पाँव से रुस्वाइयाँ उलझ जाएँ सुनें ये दिल से मिरे दर्द की अज़ान अगर 'नदीम' आप की शहनाइयाँ उलझ जाएँ