कहेंगे किस से हैं ख़ुद अपनी तेग़ के घायल न इख़्तियार पे क़ाबू न जब्र के क़ाइल मैं ख़ुद हूँ अपनी तमन्ना-फ़रेबियों का शिकार जो दिल पे गुज़रे गुज़र जाए पर न तू हो ख़जिल हयात वक़्फ़ा-ए-राहत है राह-रौ के लिए अदम से ता-ब-अदम है सफ़र की इक मंज़िल नवेद-ए-आलम-ए-नौ दे रहा है सैल-ए-इरम छुपे हुए हैं समुंदर की तह में भी साहिल न बढ़ सका हद-ए-इदराक से शुऊ'र-ए-तलब गुनाहगार हूँ मैं अपने हौसलों से ख़जिल है बार-ए-दोश हमारे लिए भी सर अपना तुम्हारे शहर में फिरते हैं अब खुले क़ातिल मुझे तो सदमा-ए-फ़ुर्क़त से इतना होश न था तुम्हें ख़बर है ये किस का धड़क रहा था दिल अभी से गर्मी-ए-आग़ोश-ए-मौज-ए-बहर कहाँ बहुत है दूर अभी तो मुराद का साहिल वो चाट लेते हैं कलियों से क़तरा-ए-शबनम जिन्हें समझते हैं दुनिया में लोग दरिया-दिल हमीं ने दर्द को सारे जहाँ के अपनाया हमीं को लोग समझते हैं मुजरिम-ओ-क़ातिल मुआहिदा भला सय्याद-ओ-सैद में कैसा ये इत्तिफ़ाक़ है वो भी हैं आज पा-दर-गिल क़लंदरान-ए-तही-दस्त कुछ नहीं रखते ज़ह-ए-नसीब अगर हो क़ुबूल हदिया-ए-दिल वो 'क़ादरी' को समझते हैं जाँ-निसारों में करम है उन का फ़क़त हम नहीं किसी क़ाबिल