बदन की क़ैद में है ग़म मुझे तेरी जुदाई का मिरे आक़ा मुझे भी एक मौक़ा दे रिहाई का इधर ये दुख अलग की अब तलक लंका में हैं सीता उधर बे-जान होता जा रहा है जिस्म भाई का सियासत हो कि दुनिया हो वो आ जाती है घुटनों पर निकल पड़ता है जब किरदार कोई रौशनाई का हमारा यार कल शब तेरी इक तस्वीर ले आया दिखाने लग गया बीमार को परचा दवाई का मुझे तो देख कर ऐसे कम अज़ कम मुस्कुरा तो मत बुरा भी मान सकता है सनम चूड़ा कलाई का कभी घंटों पड़े रहते थे माँ की गोद में इस पर चलो माँ नाम रखते हैं ‘विराट’ इस चारपाई का