बदन से रूह तलक हम लहू लहू हुए हैं तुम्हारे इश्क़ में अब जा के सुर्ख़-रू हुए हैं हवा के साथ उड़ी है मोहब्बतों की महक ये तज़्किरे जो मिरी जान कू-ब-कू हुए हैं वो शब तो कट गई जो प्यास की थी आख़िरी शब शरीक गिर्या-ए-शबनम में अब सभू हुए हैं तुम्हारे हुस्न की तश्बीब ही कही है अभी चराग़ जलने लगे फूल मुश्क-बू हुए हैं अजीब लुत्फ़ है इस टूटने बिखरने में हम एक मुश्त-ए-ग़ुबार अब चहार-सू हुए हैं बजा है ज़िंदगी से हम बहुत रहे नाराज़ मगर बताओ ख़फ़ा तुम से भी कभू हुए हैं मैं तार-तार 'ज़फ़र' हो गया हूँ जिस के सबब फ़लक के चाक उसी फ़िक्र से रफ़ू हुए हैं