बड़े अजीब हैं दुनिया के ये नशेब-ओ-फ़राज़ कोई पढ़े कहाँ जा कर मोहब्बतों की नमाज़ जहाँ में कुछ नहीं मिलता सिवा अदावत के मगर नज़र में नहीं है कोई भी उस का जवाज़ तमाम ज़िंदगी इस जुस्तुजू में गुज़री है न खुल सका किसी सूरत भी ज़िंदगी का राज़ बस इक निगाह में वो दिल को छीन लेते हैं कहाँ से लाए कोई उन का ये हसीं अंदाज़ किसी भी हाल में गुज़रे ये ज़िंदगी अपनी मगर न दस्त-ए-तलब हो सकेगा हम से दराज़ किसी का भी नहीं अब ए'तिबार दुनिया में कहें तो किस को कहें हम जहान में हमराज़