बड़े सलीक़े से अब हम को झूट बोलना है मरे न कोई फ़क़त इतना ज़हर घोलना है रखी हुई है तिरी याद दिल के पलड़े में अब इस तराज़ू में इक इश्क़ और तोलना है मैं इस लिए भी ज़माने में सब को प्यारा हूँ मुझे पता है कहाँ कितना झूट बोलना है हमारे देश में इंसाफ़ की जो देवी है अब आस्था से उसे ज़िंदगी को तोलना है हवा लिए हुए फिरती है क़ैंचियाँ 'यासिर' बड़े हिसाब से अपने परों को खोलना है