बढ़ गई मय पीने से दिल की तमन्ना और भी सदक़ा अपना साक़िया यक जाम-ए-सहबा और भी एक तो मैं आप नासेह हूँ परेशाँ ख़स्ता-जाँ दिल दुखा देती है तेरी पिंद-ए-बेजा और भी दास्तान-ए-शौक़-ए-दिल ऐसी नहीं थी मुख़्तसर जी लगा कर तुम अगर सुनते मैं कहता और भी कुछ तो पहले से दिल-ए-बेताब था वहशी-मिज़ाज बे-तिरे दिन रात घबराता है तन्हा और भी देखते ही देखते 'तस्लीम' वो छुपने लगे बढ़ गया बे-पर्दगी में मुझ से पर्दा और भी