इश्क़ के दौर में कुछ ऐसे भी पहलू आए हँसना चाहा तो मिरी आँखों में आँसू आए इक तो वो फूल ही काग़ज़ के उठा लेता है इस पे ये ज़िद है कि इन फूलों से ख़ुशबू आए तू कहाँ था कि तुझे ढूँडने मेरे घर तक कभी भौंरे कभी तितली कभी जुगनू आए बस ये ही सोच के हर वक़्त तुझे याद किया अपनी यादों के तआ'क़ुब में कभी तो आए मेरा सब्र और तिरे ज़ुल्म-ओ-सितम तोल सके काश ईजाद में ऐसा भी तराज़ू आए तू ही उस ख़्वाब की ता'बीर बता क्यों 'ख़ालिद' जिस्म से मेरे तिरे जिस्म की ख़ुशबू आए