बढ़े हैं हाथ कहाँ ये तो इक नुमाइश है मैं डूब जाऊँ मिरे दोस्तों की ख़्वाहिश है खुली फ़ज़ा में कहीं ख़ेमा डाल लें चल कर घुटन है कमरे के अंदर ग़मों की बारिश है न जाने क्या हो मआल-ए-सफ़र नहीं मालूम क़दम क़दम पे मिरे दिल की आज़माइश है ग़ुबार-ए-राह था मैं तू ने हौसला बख़्शा मुझे गले से लगाया तिरी नवाज़िश है ये कैसा मौसम-ए-शादाब है कि अब के बरस शजर हरा है न पत्तों में कोई जुम्बिश है खिले न फूल कोई मेरे दिल के आँगन में है चाल धूप की 'पैकर' हवा की साज़िश है