बड़ी गुत्थियाँ हैं बड़े मसअले हैं कहें किस से हम किस क़दर मरहले हैं कोई दिन की बातें हैं कुछ और साँसें बहुत मुख़्तसर रूह के सिलसिले हैं गुलिस्तान ही ज़द में है बिजलियों की लिए चार तिनके किधर हम चले हैं कड़ी धूप गुम-गश्ता राहें बे-मंज़िल शिकस्ता-नज़र है बुलंद हौसले हैं