बसर गर यूँ ही हो तो क्या फ़ाएदा है यही ज़िंदगी हो तो क्या फ़ाएदा है इधर मेरे घर में नहीं कोई खिड़की उधर चाँदनी हो तो क्या फ़ाएदा है अयाँ है नज़र से तिरी चोर दिल का ज़बाँ क़ंद सी हो तो क्या फ़ाएदा है मुरव्वत में कोई कहाँ तक निभाए कि जाँ पर बनी हो तो तो क्या फ़ाएदा है