बड़ी लतीफ़ बड़ी ख़ुश-गवार गुज़री है वो ज़िंदगी जो सर-ए-कू-ए-यार गुज़री है हलाक-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार गुज़री है तमाम उम्र बड़ी बे-क़रार गुज़री है मक़ाम ऐसा भी आया है इश्क़ में कि जहाँ नफ़स की आमद-ओ-शुद दिल पे बार गुज़री है निगाहें फ़र्श-ए-रह-ए-दोस्त और दिल बेताब अजीब तरह शब-ए-इंतिज़ार गुज़री है जुनूँ का कोई तअल्लुक़ नहीं चमन से मगर दिलों के ज़ख़्म सजा कर बहार गुज़री है नज़ाकत-ए-ग़म-ए-जानाँ की इंतिहा मत पूछ शिकायत-ए-ग़म-ए-दौराँ भी बार गुज़री है हमारी ज़ीस्त का हासिल न पूछ ऐ 'बिस्मिल' असीर-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार गुज़री है