नग़्मा-ए-दिल का नया अंदाज़ होना चाहिए सारा आलम गोश-बर-आवाज़ होना चाहिए हुस्न को हुस्न-ए-सरापा नाज़ होना चाहिए आम जलवों से बहुत मुम्ताज़ होना चाहिए एक ही मंज़र से उक्ता जाएँगे अहल-ए-नज़र ज़िंदगी को इंक़लाब-अंदाज़ होना चाहिए चश्म-ए-नज़्ज़ारा-तलब ये बे-हिसी अच्छी नहीं इम्तियाज़-ए-जल्वा-गाह-ए-नाज़ होना चाहिए नग़्मा-ए-कैफ़-आफ़रीं भी रूह का पैग़ाम भी साज़ में सब कुछ है लेकिन साज़ होना चाहिए किस को जुरअत है कि ठुकरा दे क़फ़स वालों की बात हाँ मगर हम सब को इक आवाज़ होना चाहिए वक़्त आने पर क़फ़स को ले उड़े गुलशन की सम्त 'बिस्मिल' ऐसा जज़्बा-ए-परवाज़ होना चाहिए