बड़ी मुद्दत से था अन्दर मगर कल ही निकाला है तुम्हें खोने का था दिल में जो डर कल ही निकाला है हमें क्या ख़ाक था मालूम ऐसे दिल दुखाएगा पुराना ख़त जो हम ने खोज कर कल ही निकाला है ये तेरे ख़्वाब भी कम्बख़्त रातों को इन आँखों में मुसलसल फिर रहे थे दर-ब-दर कल ही निकाला है इक अर्सा हो गया तुझ को निकाले फिर न जाने क्यों लगा ऐसा कि जैसे बेशतर कल ही निकाला है निकाला है उसे 'हामिद' यूँ पहले भी निगाहों से मगर इस दिल से उस को इस क़दर कल ही निकाला है