बिखरे जो ख़लाओं में ये चाँद सितारे हैं कुछ ख़्वाब तुम्हारे हैं कुछ ख़्वाब हमारे हैं क्या ख़ून रुलाते हैं तन्हाई के आलम में वो लम्हे मोहब्बत के जो साथ गुज़ारे हैं मुमकिन है ज़माने को फिर उन की ज़रूरत हो ये अम्न-ओ-मोहब्बत के अनमोल नज़ारे हैं यारब मिरी कश्ती का अब तू ही मुहाफ़िज़ है तूफ़ान मुक़ाबिल है और दूर किनारे हैं ये झूटी सियासत और मतलब के नुमाइंदे कहते हैं बढ़ो आगे हम साथ तुम्हारे हैं बे-क़द्र ज़माने को एहसास नहीं आख़िर मोती की तरह 'रहबर' ये अश्क हमारे हैं