बड़ी तमन्ना है जाऊँ सू-ए-सितम किसी दिन मिज़ाज पूछे तो कोई अहल-ए-करम किसी दिन वो भीगा चेहरा सभों से हट कर सवाल पूछे हमारी आँखों की आग होगी न कम किसी दिन हमारे मस्लक का आदमी क्या कहेगा हम को जो ढल गए मस्लहत के साँचे में हम किसी दिन हमारे माबैन बद-गुमानी की ईंट कैसी मिले जो मौक़ा तो पूछें तुझ से सनम किसी दिन जो आईने में तुम्हारे जागे वो अक्स रख लो ये भीड़ परछाइयों की होगी न कम किसी दिन तुम्हें भी हम ज़िंदगी की कोई सलाह देंगे समझ गए धूप-छाँव अपनी जो हम किसी दिन हमारे हिस्से की रौशनी तुम जगाए रखना कि तीरगी के सफ़र से लौटेंगे हम किसी दिन