सर-ए-बाज़ार हम ने भी तमाशा क्या नहीं देखा भरे संसार में हम ने कोई तुम सा नहीं देखा न छेड़ो बात उल्फ़त की मोहब्बत और चाहत की फ़रेब-ए-हुस्न में हम ने सितम क्या क्या नहीं देखा यहाँ हर रोज़ होती है क़यामत हर घड़ी बरपा किसी बस्ती को ऐसे ख़ून में डूबा नहीं देखा जहाँ देखूँ वहाँ बस एक ही आतिश-ज़बानी है बरसते फूल हों जिन से कोई ऐसा नहीं देखा नसीहत रास कोई भी तुझे आती नहीं 'मोहसिन' ज़माने भर में पत्थर-दिल कोई तुझ सा नहीं देखा