बदले न गए हम से तो हालात अभी तक करते ही रहे लोग सवालात अभी तक इक हम कि कहीं आशियाँ ता'मीर न कर पाए वो महव ब-ता'मीर-ए-महल्लात अभी तक इक बार ही दुनिया से ज़रा दिल जो लगाया दामन से हैं लिपटी हुई आफ़ात अभी तक करती रहीं इंसान को इंसान से बद-ज़न तहज़ीब-ए-नौ ये तेरी ख़ुराफ़ात अभी तक मिलता ही नहीं कोई हमें पूछने वाला सीने में दबा रक्खे हैं जज़्बात अभी तक दिल टूट सा जाता है तड़प जाता हूँ उस दम याद आते हैं रह रह के वो लम्हात अभी तक इक हम ही 'अमीं' वक़्त का पैग़ाम न समझे मुमकिन है बदल जाते ये हालात अभी तक