बदली बदली सी गुलिस्ताँ की हवा आज भी है दस्त-ए-सरसर में गुल-ए-तर की क़बा आज भी है आज भी ख़ून-ए-शहीदाँ से है तज़ईन-ए-जमाल दस्त-ए-क़ातिल को तमन्ना-ए-हिना आज भी है कारगर हो न सका ज़ख़्म के मरहम का इलाज मेरे सीने में हर इक ज़ख़्म हरा आज भी है आंसुओं में बड़ी लज़्ज़त थी बहुत पहले भी इक तरफ़ बैठ के रोने में मज़ा आज भी है हाँ वो 'जावेद' वही तेग़-ए-तग़ाफ़ुल का क़तील एक मिनजुमला अरबाब-ए-वफ़ा आज भी है