रश्क-ए-फ़िरदौस है उस ग़ुंचा-दहन की ख़ुशबू मेरी हर साँस में है उस के बदन की ख़ुशबू हाल कहते हुए उस का मिरे लब जलते हैं है ख़यालों में मिरे शो'ला-बदन की ख़ुशबू वो परी-वश नज़र आ जाए तो आती है मुझे शोख़ी-ए-दाग़ की हसरत के सुख़न की ख़ुशबू मेरे अशआ'र से रौशन है क्लासिक का चराग़ है तग़ज़्ज़ुल में मिरे मीर के फ़न की ख़ुशबू तजरबा है ये ग़रीब-उल-वतनी का यारो बारहा टूट के आती है वतन की ख़ुशबू दुश्मन-ए-फ़स्ल-ए-बहाराँ है वो तख़रीबी है जिस में आती न हो ता'मीर-ए-वतन की ख़ुशबू 'ग़ालिब'-ओ-'मीर' 'वली' 'हसरत'-ओ-'मोमिन' की तरह सब के शे'रों में है उस हुस्न-ए-कुहन की ख़ुशबू हैं तेरे फूल से अल्फ़ाज़ की ग़ज़लें 'आसी' बज़्म में दूर से आती है सुख़न की ख़ुशबू