बदनाम का जहाँ में सहारा नहीं कोई पत्थर हर एक हाथ में ईसा नहीं कोई कुछ देर मेरी खाट पे बैठो मिरे अज़ीज़ इस खाट में छुपा हुआ काँटा नहीं कोई कमज़ोरियों का मेरी जहाँ भर में शोर है मेरी ख़ुसूसियात का चर्चा नहीं कोई ख़ैरात चार टुकड़ों की निकले थे बाँटने ऐसा लगा ज़मीन पे भूका नहीं कोई हम भी मुआ'शरे को चले थे सँवारने दुश्मन हज़ार हो गए सुधरा नहीं कोई गमलों में क़ैद हो गया 'जावेद' फूल क्यों घर की हदों के पार तो महका नहीं कोई