बाग़ में जुगनू चमकते हैं जो प्यारे रात को याद आते हैं उन आँखों के इशारे रात को शुबह है तुम को कहाँ टूटे हैं तारे रात को दम-ब-दम आँसू टपकते थे हमारे रात को टूटे तारे सैकड़ों यूँ क़ुदसियों के दिल हिले दर्द से जिस वक़्त हम तुम को पुकारे रात को पूरी गर्दिश आसमाँ ने शाम से की ता-सहर आज मैं ने गिन लिए सारे सितारे रात को धूप निकली दिन को चेहरे से हटा ली जब नक़ाब चाँदनी फैली जहाँ कपड़े उतारे रात को साफ़ करवट लेने की आवाज़ आई कान में सू-ए-दिल जब झुक के हम तुम को पुकारे रात को ज़र्रों को शाबाश दिन को हैं हुज़ूर-ए-मेहर-ए-रुख़ देखिए छुप के निकलते हैं सितारे रात को हिज्र की मुद्दत न होगी ख़त्म साबित हो चुका दिन को ज़र्रे गिन चुका मैं और तारे रात को उल्फ़त-ए-रुख़ में है वहशत याद-ए-गेसू में बुका दिन को सहरा में हैं दरिया के किनारे रात को आ गई सुब्ह-ए-क़यामत और मैं सोया नहीं फिर न आई नींद तुम जब से सिधारे रात को दिल जिगर लेने फिर आए सुब्ह को कहते हुए रह गए बिस्तर पे दो मोती हमारे रात को मुँह पे ज़ुल्फ़-ए-ज़र-फ़िशाँ है मुझ से है रोने का हुक्म चाँदनी देखी है दरिया के किनारे रात को आप आराइश भी करते हैं मुआफ़िक़ वक़्त के दिन को मुँह धोया गया गेसू सँवारे रात को ढूँढते फिरते हैं दिल को सुब्ह से हर-सू 'रशीद' दिल-रुबा था एक पहलू में हमारे रात को