बाग़-ए-उल्फ़त में गुल जो ख़ुद-रौ है ख़ून-ए-बुलबुल का रंग है बू है आशिक़-ए-जाँ फ़िदा-ए-अबरू है जो मह-ए-ईद सर-ब-ज़ानू है फ़ित्ना-ए-हश्र ज़ुल्फ़-ए-उम्र-ए-दराज़ पर बला-ए-सियाह गेसू है तेरी अबरू है तेग़ ऐ सफ़्फ़ाक जौहर-ए-तेग़ चीन-ए-अबरू है हुस्न उन का अगर है संगीं दिल इश्क़ अपना भी सख़्त बाज़ू है लें न शोर-ए-नुशूर से करवट वो यहाँ ख़्वाब चार पहलू है तोल ले शेर को मिरे हासिद पास अगर नज़्म की तराज़ू है क्यूँ न वो चश्म-ए-शौक़ में खटके ऐ परी-रू कमर तिरी मू है उस का आशिक़ हुआ हूँ जिस की 'वक़ार' चश्म आहू निगाह आहू है