बाग़बाँ बद-गुमाँ न हो जाए दुश्मन-ए-आशियाँ न हो जाए गर्दिशें बढ़ रही हैं क़िस्मत से ये ज़मीं आसमाँ न हो जाए मुस्कुरा तो रहे हैं आप मगर नज़्र-ए-आतिश जहाँ न हो जाए देख लें ख़ुद वो ताब-ए-नज़्ज़ारा शर्म जो दरमियाँ न हो जाए चुटकियों से तिरी ये पर्दा-ए-दिल जान-ए-मन धज्जियाँ न हो जाए बिजलियों को है ज़िद कहीं जल कर ख़ाक ये आशियाँ न हो जाए तेरी रूदाद-ए-इश्क़ भी 'पैकाँ' क़ैस की दास्ताँ न हो जाए