बाग़बाँ इतना तो नादान नहीं हो सकता कोई इक फूल गुलिस्तान नहीं हो सकता और भी लोगों की उम्मीदें हैं मुझ से सो मैं काम आ सकता हूँ क़ुर्बान नहीं हो सकता बारहा आँखों ने देखा है वही सब होते जिस का सुनते थे कि इम्कान नहीं हो सकता कोई क़िस्सा हो मिरे दोस्त अधूरा न सुना शहर इक दिन में बयाबान नहीं हो सकता सैर-ए-दुनिया से भरम होता है आज़ादी का जिस में वुस'अत हो वो ज़िंदान नहीं हो सकता ऐसा आसान हदफ़ सब की नज़र हो जिस पर कुछ भी हो सकता है आसान नहीं हो सकता जिसे देखो वही सहरा का तलबगार है अब इतना दिलकश है तो वीरान नहीं हो सकता