बगूले बहुत हैं मिरी घात में घिरा हूँ अजब दश्त-ए-हालात में कभी ख़ूँ से रंगीं भी हो चश्म-ए-तर धनक भी नज़र आए बरसात में किसी दर्द की आँच दे कर परख चमकती है इक शय मिरी ज़ात में लकीरों का हर सिलसिला बे-कराँ खुले पानियों का सफ़र हात में वही तेरी आँखों के हैरत-कदे वही मैं जहान-ए-तिलिस्मात में सियह घर की बीमार ज़ौ से निकल ज़रा घूम-फिर चाँदनी-रात में बिछा है कहीं ज़ेहन में दाम सा फड़कता है कोई ख़यालात में बजा नर्मी-ए-लफ़्ज़ 'शाहीं' मगर लिए फिर कोई संग भी हात में