बहा के ख़ून-ए-जिगर लाला-ज़ार देखेंगे ख़िज़ाँ में शोख़ी-ए-रंग-ए-बहार देखेंगे ग़म-ए-फ़िराक़ में काटी है ज़िंदगी हम ने कठिन है कितनी शब-ए-इंतिज़ार देखेंगे बिखर गई हैं जो ज़ुल्फ़ें उन्हें सँवारो तो ज़रा तमाशा-ए-लैल-ओ-नहार देखेंगे नक़ाब उठने पे अंजाम देखिए क्या हो अभी तो है ये हवस बार बार देखेंगे नज़ारा देखने आए हैं ख़ुद वो साहिल पर सफ़ीने होते हैं किस तरह पार देखेंगे बनेगी अपनी ख़मोशी ही मुद्दआ' दिल का किसी को बज़्म में क्यों शर्म-सार देखेंगे हमारे बा'द ब-सद-यास कारवाँ वाले कभी ग़ुबार कभी रहगुज़ार देखेंगे ग़म-ए-फ़िराक़ के शो'लों को और तेज़ करो हम इंक़लाब-ए-ग़म-ए-रोज़गार देखेंगे जला के बज़्म में 'नातिक़' चराग़-ए-दिल रख दो जो अहल-ए-दर्द हैं परवाना-वार देखेंगे