बहार आने पे गुलशन में अजब ये माजरा होगा कोई दामन गुलों से कोई काँटों से भरा होगा ब-रोज़-ए-हश्र जब उस से हमारा सामना होगा हम उस को देखते होंगे वो हम को देखता होगा उन्हीं को हक़ है जीने का जो मरने से न घबराएँ जो जीने से भी घबराएँ वो मर जाएँ तो क्या होगा तुझे अपना कहूँ ग़ैरों की महफ़िल में ये ना-मुम्किन कभी हाँ बे-ख़ुदी में मैं ने ऐसा कह दिया होगा तिरा ही नाम है लब पर तिरा ही ध्यान है दिल में ख़ुदा कह दूँ तुझे हमदम तो क्या ये नारवा होगा न आना हो तो ख़्वाबों में भी आप आएँ न अब हरगिज़ किसी फ़ुर्क़त के मारे पर करम ये आप का होगा मिरा होना न होना है तुम्हारी बज़्म में यकसाँ न था तो तुम को क्या ग़म था न हूँगा मैं तो क्या होगा मुक़द्दर तो मुक़द्दर है सर-ए-तस्लीम ख़म कर दे बुरा होगा भला होगा तिरी कोशिश से क्या होगा हमें भी देख लें इक दिन कभी वो मेहरबाँ हो कर हमारी ज़िंदगी में 'सेहर' क्या ये मो'जिज़ा होगा