बे-सबब जी से गुज़रना नहीं अच्छा होता

बे-सबब जी से गुज़रना नहीं अच्छा होता
मौत से पहले भी मरना नहीं अच्छा होता

बात हो कोई तो इंसान बिगड़ भी जाए
वहम-ए-बेजा पे बिफरना नहीं अच्छा होता

सब्र से बैठ अगर ताक़त-ए-परवाज़ नहीं
शिकवा-ए-बे-परी करना नहीं अच्छा होता

मरना उन का है जो औरों के लिए मरते हैं
अपने ही वास्ते मरना नहीं अच्छा होता

आप सच्चे हैं तो कुछ पास-ए-ज़बाँ भी रखिए
करके वा'दा तो मुकरना नहीं अच्छा होता

आदमी अपनी हदों ही में रहे बेहतर है
सर से पानी का गुज़रना नहीं अच्छा होता

फ़िक्र-ए-उक़्बा भी तो लाज़िम है कभी ऐ नादाँ
फ़िक्र-ए-हस्ती ही में मरना नहीं अच्छा होता

मौत को खेल समझना भी है इक नादानी
ज़ीस्त से प्यार भी करना नहीं अच्छा होता

बात तो जब है कि आसूदा-ए-मंज़िल हों भी
यार तन्हा तो उतरना नहीं अच्छा होता

हद कोई 'सेहर' हुआ करती है ज़ब्त-ए-ग़म की
यूँही घुट-घुट के तो मरना नहीं अच्छा होता


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