बहार-ए-मा'नी-ए-रंगीं है अंदाज़-ए-रक़म मेरा बना है मतला-ए-हम्द-ए-ख़ुदा बाग़-ए-इरम मेरा अजल के हाथ से आख़िर निकल आया भरम मेरा निहाँ था अंदरून-ए-पर्दा-ए-हस्ती अदम मेरा नहीं मूसा कि ग़श खा कर गिरूँगा इस तजल्ली से अज़ल से शग़्ल है नज़्ज़ारा-ए-हुस्न-ए-सनम मेरा ये वो आतिश है बल दम में निकाले बर्क़-ए-सोज़ाँ का पड़ी है सर्द दोज़ख़ देख कर सोज़-ए-अलम मेरा न गिरता चाह में उन की तो क्या कूएँ झँकाते वो तबाही का मिरी बाइ'स हुआ है ख़ुद सितम मेरा नियाम-ए-तेग़ से तेरी जो ये बिजली निकलती है तो दो दो हाथ उछलता है इधर सीने में दम मेरा फ़लक की देख कर रफ़्तार-ए-पेचीदा को हैराँ हूँ कहाँ जा कर पहुँच करता है 'मज़हर' पेच-ओ-ख़म मेरा