ज़िंदगी ख़्वाब-ए-परेशाँ थी सहर से पहले एक उलझा हुआ नग़्मा थी असर से पहले मेरी आँखों की गुज़रगाह से आओ दिल में कोई गुज़रा नहीं इस राहगुज़र से पहले एक मौहूम से एहसास-ए-जुदाई के सिवा पास कुछ भी तो न था दीदा-ए-तर से पहले मुझ को पहचान ले बदली हुई हालत पे न जा मैं ने देखा है तुझे अपनी नज़र से पहले रात पुर-नूर है माहौल मोअ'त्तर है 'मुनीर' कोई गुज़रा है सर-ए-शाम इधर से पहले