बहार आई है आराइश-ए-चमन के लिए मिरी भी तब्अ' को तहरीक है सुख़न के लिए ख़याल तक न किया अहल-ए-अंजुमन ने कभी तमाम रात जली शम्अ' अंजुमन के लिए वतन में आँख चुराते हैं हम से अहल-ए-वतन तड़पते रहते हैं ग़ुर्बत में हम वतन के लिए चमन के दाम से जाएँगे हम कहाँ सय्याद क़फ़स फ़ुज़ूल है परवर्दा-ए-चमन के लिए मैं क़ैद-ए-अश्क से आज़ाद हूँ मोहब्बत में कि तुझ को शम्अ' बनाना है अंजुमन के लिए ज़बान-ए-अहल-ए-बसीरत पे अर्ज़ हैरत है सुकूत दाद है गोया मिरे सुख़न के लिए फ़रोग़-ए-तब-ए-ख़ुदा-दाद गरचे था 'वहशत' रियाज़ कम न किया हम ने क्स्ब-ए-फ़न के लिए