चला जाता है कारवान-ए-नफ़स न बाँग-ए-दरा है न सौत-ए-जरस बरस कितने गुज़रे ये कहते हुए कि कुछ काम कर लेंगे अब के बरस न वो पूछते हैं न कहता हूँ मैं रही जाती है दिल की दिल में हवस वो हसरत-ज़दा सैद मैं ही तो हूँ है परवाज़ जिस की दुरून-ए-हवस सितम हैं ये 'वहशत' तिरी ग़फ़लतें तुझे काश होता शुमार-ए-नफ़स