बहार आई है फिर वहशत के सामाँ होते जाते हैं मिरे सीने में दाग़ों के गुलिस्ताँ होते जाते हैं मुझे बचपन कर के दिल-दही भी होती जाती है जफ़ाएँ करते जाते हैं पशेमाँ होते जाते हैं कहाँ जाता है ऐ दिल शिकवा-ए-मेहर-ओ-वफ़ा करने वहाँ बे-दाद करने के भी एहसाँ होते जाते हैं 'नसीम'-ए-ज़िंदा-दिल मरने लगे हैं ख़ूब-रूयों पर ग़ज़ब है ऐसे दानिश-मंद नादाँ होते जाते हैं