इक तबीअत थी सो वो भी ला-उबाली हो गई हाए ये तस्वीर भी रंगों से ख़ाली हो गई पढ़ते पढ़ते थक गए सब लोग तहरीरें मिरी लिखते लिखते शहर की दीवार काली हो गई बाग़ का सब से बड़ा जो पेड़ था वो झुक गया फल लगे इतने कि बोझल डाली डाली हो गई अब तू दरवाज़े से अपने नाम की तख़्ती उतार लफ़्ज़ नंगे हो गए शोहरत भी गाली हो गई खींच डाला आँख ने सब आसमानों पर हिसार बन चुके जब दाएरे परकार ख़ाली हो गई सुब्ह को देखा तो 'साजिद' दिल के अंदर कुछ न था याद की बस्ती भी रातों-रात ख़ाली हो गई