बहार आई है रंग-ए-क़यास ताज़ा लिए शजर शजर के बदन पर लिबास ताज़ा लिए हमारी सम्त किसी ने पलट के देखा नहीं तमाम फिरते रहे लब पे प्यास ताज़ा लिए कोई मिला न ख़रीदार हम को शाम तलक भटक रहे हैं लहू का गिलास ताज़ा लिए गुलों की ख़ैर नहीं अब किसी तरह शायद ख़िज़ाँ का क़ाफ़िला निकला है आस ताज़ा लिए न जाने कौन सी दुनिया में खोया रहता है अभी तो आया है होश-ओ-हवास ताज़ा लिए ये तो किसी को पता ही नहीं चला 'आतिश' कहाँ से आई हवा सब्ज़ घास ताज़ा लिए